तुम

केवल तुम हो,
प्रेरणा से वेदना तक,
अभिव्यक्ति से अनुभूति तक,
अस्तित्व से जीवन तक I



मेरे प्रत्येक श्वास के आरोह -अवरोह के सूत्रधार हो तुम,
मेरी आत्मा, मेरे अंतस ,मेरी चेतना के आकार हो तुम,
तुम्हे क्या कहूँ तुम्हारे बारे में, मेरे शिल्पकार हो तुम I



तुम्हारा स्पर्श, जैसे जीवन का सजीव स्वरुप,
मन के असंख्य तारों को झंकृत करता, कामनाओं का नवीन रूप,
तुम्हारी आँखें मुझे देखती हुईं, जैसे प्रेम का साक्षात प्रतिरूप I



तुम्हारा होना जैसे जीवन की गति है ,
अचेतन में सदैव सुरक्षित , मेरी स्मृति है ,
तुम्हारा प्रेम ही,
प्रारंभ, वर्तमान और मेरी परिणति है I


अनुरोध से विरोध तक ,
प्रेम से प्रेम तक ,
जीवन से मृत्यु तक I
केवल तुम हो I


निधि भारती
१८ मई ,२०१५


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