Posts

Showing posts from April, 2016

नीरव

दुःख है अपना सुख पराया  है मनुज निज  का सताया कुछ न खोया कुछ न पाया फिर भी अहम् में सो न पाया  स्वार्थ है प्रतिपल मोहता हूँ मैं सही ये सोचता खुशियों को  खुद ही रोकता फिर नियति को है कोसता मिथ्या को है सहेजता ओर व्यर्थ को है खोजता संभावनाओं को है समेटता फिर बाट सत्य की जोहता जो हो मनुष्य तो एक बार सत्य का संकल्प लो और जीवन में फिर कभी मत क्रोध को विकल्प दो जो हो समर्थ तो एक बार अपने ह्रदय का रुख करो मिल जायेंगे प्रत्येक उत्तर ,प्रश्न खुद से तो करो निधि अखौरी अप्रैल. १८ ,२०१६ 

जो खुद पे हो यकीं I

जो खुद पे हो यकीं नामुमकिन कुछ नहीं जो है तेरा मिलेगा जो था तेरा रहेगा ग़म भी होंगे हसीं जो खुद पे हो यकीं लगते रहेंगे ठोकर खो जायेंगे तेरे होकर फिर भी जीत होगी और ज़िन्दगी जश्न सी जो खुद पे हो यकीं भ्रम होंगे सत्य जैसे और शत्रु मित्र जैसे फिर भी पथ मिलेंगे जख्म भी सिलेंगे और फूल भी खिलेंगे हर शाम नज़्म सी जो खुद पे हो हो यकीं स्वप्नों की चिता जलेगी कुछ लोग ख़ाक होंगे ख्वाब भी राख होंगे  पर दिल फिर से एक होंगे तेरे साथी नेक होंगे जो खुद पे हो यकीं     नामुमकिन कुछ नहीं जो है तेरा मिलेगा जो था तेरा रहेगा ग़म भी होंगे हसीं जो खुद पे हो यकीं