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शुभकामनाएँ सभी को !

वैसे मेरे दोस्त ज्यादा नहीं हैं, गिन सकती हूँ उँगलियों पर, इतने ही हैं। नहीं नहीं , ये सेल्फी वाले दोस्त नहीं। दोस्त,ऐसे दोस्त जो पागल हैं मेरी तरह, बेवकूफ भी हैं मेरी ही तरह तभी तो आज के दिन भी फ़ोन नहीं किया और शायद अब करें भी नहीं, शाम हो गयी अब तो। मैं चाहूँ तो ये लिखने के बदले उन्हें फ़ोन कर सकती हूँ मगर मुझे जरूरी नहीं लग रहा। रविवार है आज, क्यों बेवजह परेशान करूँ। लिखने की आदत थोड़ी छूट सी गयी है आजकल सो सोचा नहीं था की कुछ लिखूँ लेकिन आ गया एक दोस्त का मैसेज व्हाट्सएप्प पे, बड़ी अच्छी चीज है ये वैसे , व्हाट्सएप्प।  हाँ तो मैसेज आया एक दोस्त का और उस मैसेज ने मुझे याद दिला दिया की मुझे कुछ लिखना चाहिए। बड़ी अनोखी चीज होती है ये दोस्ती। सारे रिश्तों से अलग।  निभाने की कोई मजबूरी नहीं और तोड़ने की कोई वजह नहीं। बस दिल मिलने चाहिए , दोस्त किसी को भी बना लो ,किसी भी खाप ,किसी भी पंचायत , किसी भी सभा ,संगठन और कांग्रेस को कोई आपत्ति नहीं।  इतिहास में तो ढेरों उदहारण हैं लेकिन आजकल जैसे और सब रिश्ते महंगे हो चले हैं , वैसे ही दोस्त भी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। नहीं,  मिल जाते हैं

नीरव

दुःख है अपना सुख पराया  है मनुज निज  का सताया कुछ न खोया कुछ न पाया फिर भी अहम् में सो न पाया  स्वार्थ है प्रतिपल मोहता हूँ मैं सही ये सोचता खुशियों को  खुद ही रोकता फिर नियति को है कोसता मिथ्या को है सहेजता ओर व्यर्थ को है खोजता संभावनाओं को है समेटता फिर बाट सत्य की जोहता जो हो मनुष्य तो एक बार सत्य का संकल्प लो और जीवन में फिर कभी मत क्रोध को विकल्प दो जो हो समर्थ तो एक बार अपने ह्रदय का रुख करो मिल जायेंगे प्रत्येक उत्तर ,प्रश्न खुद से तो करो निधि अखौरी अप्रैल. १८ ,२०१६ 

जो खुद पे हो यकीं I

जो खुद पे हो यकीं नामुमकिन कुछ नहीं जो है तेरा मिलेगा जो था तेरा रहेगा ग़म भी होंगे हसीं जो खुद पे हो यकीं लगते रहेंगे ठोकर खो जायेंगे तेरे होकर फिर भी जीत होगी और ज़िन्दगी जश्न सी जो खुद पे हो यकीं भ्रम होंगे सत्य जैसे और शत्रु मित्र जैसे फिर भी पथ मिलेंगे जख्म भी सिलेंगे और फूल भी खिलेंगे हर शाम नज़्म सी जो खुद पे हो हो यकीं स्वप्नों की चिता जलेगी कुछ लोग ख़ाक होंगे ख्वाब भी राख होंगे  पर दिल फिर से एक होंगे तेरे साथी नेक होंगे जो खुद पे हो यकीं     नामुमकिन कुछ नहीं जो है तेरा मिलेगा जो था तेरा रहेगा ग़म भी होंगे हसीं जो खुद पे हो यकीं

परिणीता

कौन  हूँ मैं ? हूँ तुम्हारी प्रेमिका या तुम्हारी प्रेरणा हूँ तुम्हारा स्वप्न या तुम्हारी चेतना  कौन हूँ मैं ? हूँ तुम्हारा सत्य या तुम्हारी कल्पना हूँ तुम्हारा भाग्य  या तुम्हारी प्रार्थना कौन हूँ मैं ? हूँ तुम्हारी जागृति या तुम्हारी अज्ञानता हूँ तुम्हारी परिधि या तुम्हारी अनंतता मैं .... मैं तुम्हारी आत्मा, अपरिभाषित और अनंत हूँ  सम्पूर्ण हूँ व् साथ भी, आश्रित और स्वच्छंद हूँ  तुम्हारी प्रेरणा हूँ और तुम्हारी कृति  मैं तुम्हारा भाग्य और तुम्हारी वृति  मैं तुम्हें बांधती हूँ , मैं मुक्ति का आकाश भी प्रारम्भ भी, मध्य भी ,अंत और सारांश भी मैं सहचरी ,मैं प्रेमिका, सृष्टि का कल्याण हूँ मैं परिणीता,मैं प्रेयसी , जीवन पथ पर विश्राम हूँ  प्रारब्ध के वरदान से , प्रेम का प्रतिदान हूँ  मैं परिणीता , मैं प्रेयसी , मैं प्रेम हूँ , मैं प्राण हूँ  निधि अभिषेक अखौरी  फरवरी १४, २०१६