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Showing posts from October, 2015

तुम्हारे लिए - 2

1. उनका शौक़ था कि हम उन पर लिखें  और हमारी ख्वाहिश थी कि वो हमें पढ़ेँ   इश्क़ की स्याही ज़िन्दगी के पन्नों पे कुछ यूँ बिखरी , कि वो अपने वज़ूद से हमें लिखते रहे   हम अपनी मोहब्बत से उन्हें पढ़ते रहे 2. कहा हमने उनसे की मोहब्बत का हुनर नहीं हम में , वो ज़िन्दगी बन गए और कहा बस साँसे लेती रहिये 3. ये ग़म भी शौकिया है और ये नफरत भी , खुद खुदा से दुआ मांगी थी मोहब्बत की   ये मत समझना की दिल में कोई दर्द लिए बैठे हैं, लिखना आदत है हमारी और तलब है शायरी की Nidhi 

नीरव : तुम हो नहीं

सच यही की तुम मेरे सच नहीं और मेरी लकीरों में हो नहीं , दुआओं में हो मुमकिन कहीं, लेकिन तकदीरों में हो नहीं  हो मेरे जज़्बात में लेकिन हो बातों में नहीं, आँखों में रख कर क्या करुँ जब तस्वीरों में हो नहीं  जो होता ग़वारा तो तुम्हें भी , हम ख़ुदा से माँग लेते , क्या करें लेकिन, हम उन जैसे  फकीरों में नहीं  चाहते जो हम अगर , तो  सुबह को यहीं पर रोक लेते , लेकिन रात तो अब महबूब है और डर अंधेरों से नहीं कुछ तुम्हारी बेवफाई,  कुछ हमारी अगलगाई  ढाई अक्षर इश्क़ के ,पढ़ कर भी हम कबीरों में नहीं  इश्क़ की और ज़िन्दगी की जंग में सब खैर है , जो है मुनासिब ज़िन्दगी है ,जो इश्क़ है वो गैर है   निधि  अक्टूबर २६, २०१५ 

नीरव

इश्क़ खुद से भी निभाया और  उस से भी  आँखों से उसकी तस्वीर मिटा दी  लेकिन आँसू हमेशा उसके नाम के थे  यूँ तो मोहब्बत का हक़ नहीं दिया  लेकिन नफ़रतें उसी के नाम से आबाद कीं  कभी कहा था उसके महबूब ने, नाकाफ़ी है इश्क़ ज़िन्दगी के लिए उसने बस इतनी ही दुआ दी  देखना हर रोज़ इश्क़ से मुलाकात होगी  और हर रोज़ ज़िन्दगी बर्बाद होगी  और इस तरह , इश्क़ खुद से भी निभाया और उस से भी  निधि  अक्टूबर ६,२०१५