ईश्वर से : भाग II








क्या तुम नहीं रोते कभी
और अगर रोते हो तो
क्या रो रहे हो तुम अभी ?

क्या धरती का आर्तनाद 
आकाश तक पहुंचा  कभी
और अगर पहुँचा  है तो
क्या पहुँच रहा है अभी ?


मैं नहीं मांगूगी कुछ
क्षीण या समृद्ध करो 
बस छीन कर मुझसे मेरा
न देवत्व अपना सिद्ध करो 

मैं नहीं कहती कभी
की मैं तुम्हारी भक्त हूँ
अभिशाप और विवशता यही
मनुष्य हूँ , अशक्त हूँ

कर्म और धर्म तो बस
तुम्हारे रचे कुछ खेल हैं 
कर्त्तव्य और प्रारब्ध  का 
होता कहाँ कोई मेल है 


क्या  देख तुम सकते नहीं 
और अगर दृष्टि है तो
क्या देख पाते हो अभी ?

संघर्ष की शक्ति नहीं
दुःख की अभिव्यक्ति नहीं 
भय छूटने और टूटने का अब सर्वत्र व्याप्त है 
ज्ञान मोह के वश हुआ, साहस  नहीं पर्याप्त है 

जो देव हो तो ये कहो 
क्या दुखी  होते नहीं ?
जो देव हो तो हो द्रवित 
क्या रो रहे हो तुम अभी ?




निधि भारती 
जून ९ ,२०१५ 


Comments

Popular posts from this blog

Putra Jeevak versus K.C. Tyagi and MSM : Idiots of the Idiot Box.

तुम्हारे लिए - 2

ह्रदय की कैसी ये विवशता ,