अश्रुओं की भी अपनी कथा




वेदना के भार से 
जब ह्रदय होता विकल 
सत्य को स्वीकार करने ,
के प्रयत्न होते विफल 

तब,
नयनों  तक आकर 
कुछ देर पलकों पर  ठहर 
वापस चले जाते पुनः 
असहाय से अपने नगर

दुःख होता है चरम पर,
और धैर्य की होती परीक्षा 
ईश्वर और इंसान की,
होती नहीं जब एक इच्छा 

मन अधीर हो चाहता ,
संताप से जब मुक्त होना 
संशय विकल हो चाहता  , 
सत्य से संयुक्त होना 

तब ,
नयनों  तक आकर 
कुछ देर पलकों पर  ठहर 
वापस चले जाते पुनः 
असहाय से अपने नगर

अश्रुओं की भी अपनी कथा, 
ना  कह सकें अपनी व्यथा 
ना मुक्त हों , ना बंध सकें,
जीवन की कैसी ये प्रथा 

जो व्यक्त हो जाएं कहीं,
तो  जग कहे दुर्बल है मन 
और जो अव्यक्त हों,
निष्ठुर कहे अपना ही मन 

शब्द जब निःशब्द  होकर,
मौन का करते वरण
वाणी जब अवरुद्ध होकर, 
करती ह्रदय का अनुसरण 

तब ,
नयनों  तक आकर 
कुछ देर पलकों पर  ठहर 
वापस चले जाते पुनः 
असहाय से अपने नगर




निधि भारती 
१० जून ,२०१५ 



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