नीरव : तुम्हे देने को बहुत कुछ रखा है
तुम्हे देने को बहुत कुछ रखा है
वो तुम्हारे कुछ खत ,कुछ सूखे फूल और वो एक रात
ना मैं बदली ना तुम बदले ,बदले तो बस कुछ वायदे हैं
मर्यादा और शिष्टता तो संसार के कुछ कायदे हैं
प्रेम तो अब भी वहीं है ,वैसे ही आतुर व चंचल
है नहीं बस वो ह्रदय ,विश्वास से भरा व निश्छल
देह की व्याकुलता क्षणिक, नियति भी प्रकृति को विस्तार देना
ह्रदय नहीं नियमों में बंधा ,नियति ,प्रकृति बस प्यार देना
प्रेम में बंध कर कभी भी, कोई नहीं फिर मुक्त होता
बस बदल जाते हैं बंधन, कोई कवि कोई अव्यक्त होता
प्रेम में बस प्रेम ही होता है जीर्ण या रहता नवीन
प्रेम का तो लक्ष्य होता प्रेम में होना विलीन
तुमसे नहीं कोई शिकायत ,तुम बस एक बिसरी याद हो
हो नहीं तुम अब कहीं भी,हो भी तो मेरे बाद हो
खाली हाथ , निर्बल ह्रदय और अहम की गाँठ खोले
जीवन से थक, दूर प्रेम से ,रह जाओगे जब अकेले
आना तुम उसी जगह ,जहाँ प्रेम का वचन दिया था
तुम्हे देने को बहुत कुछ रखा है
तुम्हारा प्रेम, तुम्हारी विवशता और वो एक रात
वो तुम्हारी मुक्ति ,तुम्हारा जीवन और वो एक बात
नयन
जून १६.२०१५
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