अनकही
मैं ही हूँ या कोई और, जैसे खुद को जानती ही नहीं
लोग पूछते हैं मुझसे ,मैं खुश हूँ की नहीं
मैं सोचती हूँ , मैं हूँ तो सही
लोग ढूंढते हैं मुझमें , तुम हो की नहीं
मैं खुश हूँ मुझमे तुम हो तो सही
मैं सोचती हूँ , मैं हूँ तो सही
लोग ढूंढते हैं मुझमें , तुम हो की नहीं
मैं खुश हूँ मुझमे तुम हो तो सही
तुम्हें खोना खुद को खोने जैसा है
और तुम्हे पाना सपने जैसा है
तुम्हे सोचना तुम्हारी होने जैसा है
और तुम्हारी होना तुम्हे पाने जैसा है
ऐसा नहीं की मेरे सपने बदल गए
मेरा सच बदल गया या अपने बदल गए
ऐसा नहीं की मन बदल गया
छोटी सी बात है
बस जीवन बदल गया
ऐसा कम हीं बार होता है
मन को कोई स्वीकार होता है
मन को कोई स्वीकार होता है
कुछ लोग नियति कहते हैं
बस ऐसे ही प्यार होता है
दोनों हाथ प्रार्थना में जुड़ जाते हैं
पाँव मंदिर की और मुड़ जाते हैं
जिसे देखा नहीं,वो हर जगह होता है
समझ से परे ,वह वो वजह होता है
अगर मन को ये अधिकार होता
और नियति को स्वीकार होता
और नियति को स्वीकार होता
तुम ही जिद होते और तुम्ही जिंदगी भी
तुम ही दुआ होते और तुम्ही बंदगी भी
तुमसे ही खुशियां होती ,तुमसे ही चाहत भी
तुमसे ही आंसू होते, तुम से ही शिकायत भी
तुम ही हर सुबह होते , तुम्ही हर शै भी
तुम ही हर जगह होते , तुम ही मैं भी
ये कैसी उम्मीद दे गए हो तुम की मैं हारती ही नहीं
मैं ही हूँ या कोई और ,जैसे खुद को जानती ही नहीं
मैं ही हूँ या कोई और ,जैसे खुद को जानती ही नहीं
नयन
Image courtesy : Google
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