A girl's pen : ईश्वर से : भाग II: क्या तुम नहीं रोते कभी और अगर रोते हो तो क्या रो रहे हो तुम अभी ? क्या धरती का आर्तनाद आकाश तक पहुंचा कभी और अगर पहु...
I am tired of seeing the tired face of Baba Ramdev and K.C. Tyagi on different channels. Except the anchor and Tyagi ji's Nehru coat, nothing changes at all. Being a girl, I am convinced and I don't see any harm in the name of the medicine. Living in a time which is said to be progressive for women, I have not seen any girl in TV advertisements except Vidya Balan or a few, who appears on TV to promote something which is not related to find new ways to enhance girl's beauty. Be it Dove, Fair & Lovely, Olay, Lakme or anything, it is all about how a girl can look beautiful. I correct myself here ! not beautiful, its about looking more and more beautiful. Impressive philosophies and Punchlines like ....you are worth it ! Wow ! Gorepan se kahin zyaada, saaf gorapan !!! and a lot more. A beautiful girl is making a fake and false promise to all girls out there which has been proven wrong ,a brand is selling its products and earning crores ...
1. उनका शौक़ था कि हम उन पर लिखें और हमारी ख्वाहिश थी कि वो हमें पढ़ेँ इश्क़ की स्याही ज़िन्दगी के पन्नों पे कुछ यूँ बिखरी , कि वो अपने वज़ूद से हमें लिखते रहे हम अपनी मोहब्बत से उन्हें पढ़ते रहे 2. कहा हमने उनसे की मोहब्बत का हुनर नहीं हम में , वो ज़िन्दगी बन गए और कहा बस साँसे लेती रहिये 3. ये ग़म भी शौकिया है और ये नफरत भी , खुद खुदा से दुआ मांगी थी मोहब्बत की ये मत समझना की दिल में कोई दर्द लिए बैठे हैं, लिखना आदत है हमारी और तलब है शायरी की Nidhi
ह्रदय की कैसी ये विवशता , न सत्य को स्वीकार करता ना ही है प्रतिकार करता रुक जाऊं या पथ बदल लूँ बस यही विचार करता द्वंद्व प्रेम और कर्त्तव्य में, है ह्रदय बस मौन दर्शक कर्तव्य का यह मित्र है और प्रेम का जो पथ प्रदर्शक अपनी प्रकृति से हो विवश कभी त्याग कभी व्यापार करता ह्रदय की कैसी ये विवशता , न सत्य को स्वीकार करता ना ही है प्रतिकार करता रुक जाऊं या पथ बदल लूँ बस यही विचार करता द्वेष का है दंश सहता दुष्टता का दोष भी वेदना का भार ढोता शिष्टता का रोष भी कभी रह कर सरल कभी बन कर प्रबल कभी स्वागत कभी प्रहार करता ह्रदय की कैसी ये विवशता , न सत्य को स्वीकार करता ना ही है प्रतिकार करता रुक जाऊं या पथ बदल लूँ बस यही विचार करता तठस्थता में गौण हो कर मनुष्यता में प्रकट हो कर , विशिष्टता में मौन हो कर प्रबुद्धता में प्रखर हो कर नित नए टुकड़ों में बँटकर, जीवन को एकाकार करता ह्रदय की कैसी ये विवशता , न सत्य को स्वीकार करता ना ही है प्रतिकार करता रुक जाऊं या पथ बदल लूँ बस यही विचार करता
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