हमनवाँ खुद को बना चलता रहे !
हमनवाँ खुद को बना चलता रहे
है यही बेहतर इन्सां के लिए
कसमों को इरादों की जरुरत है कहाँ
हो गर जरूरी तो बस बात बदलता रहे
पावँ जो थक भी गए तो भी चलता रहे
है यही बेहतर इन्सां के लिए
ज़ख्म को अब मरहम की जरुरत है कहाँ
ज़िस्म को ख़ाक समझ बस चोट बदलता रहे
हो सफर मुश्किल तो भी चलता रहे
है यही बेहतर इन्सां के लिए
है नहीं मुमकिन इस जहाँ में खुदा होना
हो जो गर मुमकिन तो खुद को बदलता रहे
वक़्त के साथ साथ चलता रहे
है यही बेहतर जिंदगी के लिए
इंसान को अब रूह की जरूरत है कहाँ
जश्न दर जश्न बस लिबास बदलता रहे
निधि
अगस्त १६
मेरे पास इस भावपूर्ण कविता के बारे मे बोलने के लिए शब्द नहीं है ।।
ReplyDeleteधन्यवाद !
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