मेरी अभिव्यक्ति
नारी का प्रेम प्रिय,नहीं होता कभी इतना सरल अभियक्ति नहीं करती कभी, विरह की वेदना विरल जब प्रेम में आतुर ह्रदय , भूलता है जटिलता देह की पाषाण कर देती है ह्रदय को कोई विवशता नेह की मेरी आँखों से जो कभी तुम काश खुद को देख पाते मेरे ह्रदय का हर रहस्य ,मेरे ह्रदय ,तब जान पाते मैं नहीं तुमसे अलग, ये बात भी तुम जान जाते न पूछते मुझसे कभी,बस जान कर हीं मान जाते ह्रदय अब समझता है तुम्हें, और तुम्हारे प्रश्न को तुम हो परखना चाहते ,मुझे और मेरे प्रयत्न को मेरा समर्पण हीं देगा तुम्हें, मेरे निश्चय व प्रेम का प्रमाण स्वीकारोक्ति के उस एक क्षण की करते प्रतीक्षा मेरे भी प्राण शील और संकोच छोड़ अब , मैं मुक्त होना चाहती रोक लो मुझको यहीं की अब तुमसे बंधना चाहती बनना भी तुमसे चाहती , तुमसे हीं टूटना चाहती तुमसे हीं हार कर सदा , तुमसे हीं सधना चाहती नारी का प्रेम प्रिय,नहीं होता कभी इतना सरल अभियक्ति नहीं करती कभी, विरह की वेदना विरल नारी का प्रेम प्रिय ,ऐसा हीं होता है जटिल और जटिल हो कर हीं ये जीवन को करता है सरल मेरी अभिव...